कांट, कृ.च.भट्टाचार्य तथा योग


हरनाम सिंह अलरेजा
दर्शन एवं योग शासकीय दिग्विजय महाविद्दालय राजनाँदगाँव (छतीसगढ़ )

ब्रह्मांड़ अथाह हैं ,ज्ञान अनन्त है किन्तु मानव-बुद्धि की क्षमता भी असीम हैं। कोई भी ऐसा ज्ञान नहीं है जो बुद्धि की कोटियों द्वारा ज्ञात न हो सके।  बस शर्त मात्र यह है कि उस ज्ञान तक पहुंचने की सही पद्धति,समुचित प्राकल्पना स्पष्ट हो। एक प्रकार से देखा जाये तो सारे दार्शनिक, विचारकों और दर्शनों ने , अपनी अपनी दार्शनिक पद्धतियों की ही खोज की हैं। 

कांट ज्ञान के प्रमाणीकरण के सन्दर्भ में एक पद्धति बतलाते है तथा यह स्थापना करते हैं कि ज्ञान तक हमारी पहुँच की सीमा यही तक है। किन्तु कृ. च. भट्टाचार्य कांट की उक्त ज्ञान - सीमा निर्धारण से संतुष्ट नहीं है, उनका मानना है कि ज्ञान के प्रमाणीकरण या निर्धारण का कोई भी निष्कर्ष अंतिम नहीं हो सकता है। यदि हम कोई सही पद्धति का अविष्कार कर पाए तो कांट की इस अवधारणा से आगे जाकर अज्ञेय को ज्ञेय में परिवर्तित कर सकते है। कृ.च. भट्टाचार्य अपने दर्शन में एक ऐसी पद्धति को बतलाते है जो कांट ज्ञान-मीमांसा से आगे जाकर भारतीय दार्शनिक दृष्टि को प्रकट करती हैं। सवाल उठता है क्या कोई ऐसी पद्धति हो सकती है जो कृष्णचन्द्र भट्टाचार्य की ज्ञान सम्बन्धी सम्भावना को प्रमाणित और प्रकट कर सकें तो इसका जवाब हमें योग-विज्ञान में मिलता है। योग-विज्ञान की बात करे तो वहां इस प्रकार की असँख्य दुर्लभ पद्धतियों का वर्णन प्राप्त होता हैं। यह कहा जा सकता है कि योग एक प्रकार से ‘ पद्धतियों का दर्शन ‘ हैं। योग के प्रमुख ग्रन्थ ‘ विज्ञान भैरव तन्त्र ‘ में आदि योग प्रवर्तक शिव द्वारा भैरवी को 112 योग-पद्धतियाँ बतलायी गयी है जो कृ. च. भट्टाचार्य की ज्ञेय संभावनाओं को, बोध की परिधि में लाकर, ज्ञान के उच्चतम और नवीन आयाम को प्रकट करती है। प्रस्तुत शोध-प्रपत्र में कांट ,कृ. च. भट्टाचार्य की पद्धति को आधार बनाते हुए, योग पद्धति द्वारा ज्ञान प्राप्त करने की ज्ञेय संभावनाओं की संक्षिप्त विवेचना की गयी हैं।


Reference 

1- सक्सेना, डॉ लक्ष्मी-समकालीन भारतीय दर्शन, पृष्ठ 283, उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ 2002
2 - शर्मा, के एल-दर्शन के रूप (कृष्ण चंद्र भट्टाचार्य की दृष्टि में), पृष्ठ 23,
3 - वही, पृष्ठ 61,
4 - सक्सेना, डॉ लक्ष्मी-समकालीन भारतीय दर्शन, पृष्ठ 269, उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ 2002
5 - शर्मा, के एल-दर्शन के रूप (कृष्ण चंद्र भट्टाचार्य की दृष्टि में), पृष्ठ 64,
6 - विज्ञानभैरव तंत्र, धारणा 23,
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How to cite this article:
Alreja HS (2022) कांट, कृ.च.भट्टाचार्य तथा योग. Research Fronts, XI: 95-98.